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कैसे बना चीन इतनी बड़ी आर्थिक शक्ति?

WORDS OF PK ROY
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विश्व के विकासशील देशों के नौजवान विशाल संख्या में चीन को आर्थिक तरक्की का एक अनोखा मॉडल मानने लगे हैं, जिसका अनुकरण किया जाना चाहिए। विकासशील राष्ट्र भारत के संदर्भ को यदि अपनी दृष्टि में रखें तो क्या वास्तव में चीन का आर्थिक मॉडल अनुसरण करने के काबिल है? भारत की बात करें तो उद्योग और व्यापार के नजरिए से सुविधाजनक राष्ट्रों की कतार में वर्ल्ड बैंक ने भारत को 134 वें स्थान पर टिकाया है। उस नजरिये से वर्ल्ड बैंक ने चीन को भारत से बहुत उपर स्थान प्रदान किया है। चीन ने विश्व की महाशक्ति अमेरिका पर अपना आर्थिक दबदबा कायम कर दिखाया है। इस वर्ष 2013 में चीन ने अमेरिका के अनेक व्यवसायों पर अपना आधिपत्य कायम कर दिखाया है। विश्व की सबसे विशाल पोर्क कंपनी जिसका कि अमेरिका के लगभग 25 शहरों में इसका विस्तार रहा है तथा तकरीबन पचास हजार अमेरिकी इसके तहत काम करते हैं। अमेरिका के ग्रामीण क्षेत्रों में इस कंपनी के निजी स्वामित्व में 460 फार्म हैं तथा तकरीबन 2100 फार्मो से इसका अनुबंध है। अमेरिकन पोर्क कंपनी की सालाना व्यापार लगभग 13 अरब डालर रहा है। इस अमेरिकन पोर्क कंपनी को चीन की शिनघुआई नामक कंपनी द्वारा 4.7 अरब डालर में बाकायदा खरीद लिया गया और यह ग्रामीण अमेरिकियों को रोजगार प्रदान करने वाली सबसे बड़ी चीनी कंपनी बन गई है। सर्वविदित है कि चीन की प्रायः सभी व्यवसायिक कंपनियों पर चीन सरकार का कड़ा नियंत्रण स्थापित रहा है, क्योंकि इन सभी कंपनियों में विराट पैमाने पर निजी पूंजी निवेश के बावजूद चीन सरकार का शेयर पचास फीसदी से अधिक बना रहा है, अतः मुनाफे में भी चीन सरकार की हिस्सदारी पचास फीसदी से अधिक कायम रही है। भारत में 1991 से मनमोहन सिंह के आर्थिक सुधारों के तत्पश्चात पब्लिक सैक्टर की अनेक कंपनियां जोकि पहले से ही कुछ बीमार चल रही थी, अब तो दम तोड़ देने कगार तक आ पंहुची हैं। इसके विपरीत चीन में पब्लिक सैक्टर की कंपनिया खुले बाजार में बाकायदा उतरने और विशाल निजी पूंजी निवेश के बावजूद खूब फलफूल रही हैं और निरंतर विकसित भी हो रही हैं। एक तरफ आर्थिक मंदी की चपेट में आए अमेरिका को विराट व्यापार घाटे का सामना करना पड़ा, वहीं चीन के पास बड़े पैमाने पर पूंजी निवेश करने के लिए खरबों डालर खजाने में पड़े हुए हैं।
विगत वर्ष चीन के सबसे धनाढ्य शख्स की वांडा नामक कंपनी ने 2.60 अरब डॉलर (तकरीबन 162 अरब रुपए) में अमेरिका की एएमसी एंटरटेनमेंट कंपनी को खरीद लिया है। एएमसी एंटरटेनमेंट कंपनी अमेरिका में सिनेमाघरों की सबसे बड़ी शृंखलाओं में से एक रही है। इसे खरीदकर अब वांडा नामक चीनी एंटरटेनमेंट कंपनी दुनिया में सिनेमाघरों की सबसे बड़ी कंपनी बन गई है। चीनी व्यवसायिक कंपनियां अब अमेरिका के डेट्रॉइट जैसे शहरों में अपना प्रभुत्व कायम करने में जुट रही हैं। चीनी कंपनियां परंपरागत रूप से पूरी तरह अमेरिकी व्यवसाय कहलाने वाले कारों और ऑटो पार्ट्स का निर्माण करने वाले उद्योगों का अधिग्रहण कर रही हैं। आज यह कहना कितना उचित है कि अमेरिकन जनरल मोटर्स कंपनी की कारें कितनी कुछ अमेरिकी रह गई हैं? लेकिन अमेरिका को सबसे ज्यादा चिंता इस बात की है कि चीन अब अमेरिका के ऊर्जा स्रोतों का भी अधिग्रहण कर रहा है। अमेरिका के टेनिसी इलाके में विशाल मात्रा में चीनी कंपनिया कोयले का खनन कर रही है। इस इलाके में कोयले का खनन इस खतरनाक हद तक पहुंच गया है कि इसके खिलाफ अमेरिकन लोग हथियार लेकर उठ खड़े हुए हैं।
यदि आयात-निर्यात दोनों को जोड़कर देखा जाए तो चीन दुनिया का नंबर एक व्यापारिक राष्ट्र बन चुका है। आजकल चीन की हुकूमत के खजाने में सबसे बड़ा विदेशी मुद्रा भंडार विद्यमान है। चीन के पास सबसे बड़ा कार बाजार विद्यमान है। यह अमेरिका की तुलना में चीन आजकल तकरीबन दोगुनी कारें निर्मित कर रहा है। चीन अमेरिका की तुलना में बीयर का दो गुना उत्पादन कर रहा है। अमेरिका की तुलना में चीन कोयले का तीन गुना और इस्पात का 11 गुना उत्पादन कर रहा है । गोल्ड का तो चीन नंबर एक उत्पादक देश बन गया है। चीन में ऊर्जा की खपत अमेरिका से कहीं ज्यादा हो चुकी है। चीन दुनिया में दैनिक उपभोग की वस्तुओं के उत्पादन करने वाला सबसे बड़ा देश बन गया है। चीन में निर्माण कार्य में सीमेंट की खपत, विश्व के शेष देशों में होने वाली सीमेंट की खपत के लगभग बराबर है। रेयर अर्थ एलिमेंट्स की तो 90 फीसदी सप्लाई चीन से ही हो रही है। रक्षा उत्पादनों के कल-पुर्जों का भी चीन सबसे बड़ा सप्लायर भी चीन बन चुका है। कोई आश्चर्य की बात नहीं कि इस जटिल वैश्विक संबंधों की दुनिया में भारत का मित्र राष्ट्र महाशक्ति अमेरिका भी शक्तिशाली शत्रु चीन से खौफजदा हो चला है। इस अंतर्राष्ट्रीय पृष्ठभूमि में नौजवान भारतीय एक ऐसा ताकतवर नेतृत्व चाहते हैं, जोकि भारत को उस महान् शिखर पर लेकर जाए, जहांकि आज चीन खड़ा है। भारत के नौजवानों को प्रतीत हो रहा है कि शायद नरेंद्र मोदी ही वह नेता हैं जो कि चीन के मुकाबले भारत को आर्थिक और सैनिक शक्ति बना सकता है।
भारत को एक राष्ट्र के रुप में जबरदस्त तौर पर चीन सरीखी प्रबल राष्ट्रभक्ति की जबरदस्त दरकार है। चीन के महान् नेता माओ-त्से-तुंग के विषय में एक बात स्पष्ट तौर पर समझी जा सकती है कि सर्वप्रथम वह चीन के एक राष्ट्रवादी नेता थे, इसके बाद ही वह प्रखर समाजवादी थे। कामरेड माओ की देशभक्त विरासत आज भी चीन में बखूबी कायम है, किंतु उनके द्वारा प्रतिपादित समाजवाद यकीनन काफी कमजोर पड़ गया है। विश्व से आर्थिक विकास की विकट होड़ में विकास का पूंजीवादी मार्ग अपनाए जाने के कारण चीनी समाज में आर्थिक विषमता एक हद तक बढ़ गई है। किंतु कामरेड माओ का परमप्रिय किसान और गाँव-देहात कदाचित इतना अधिक उपेक्षित नहीं है कि भारत की तरह लाखों की तादाद में किसान आत्महत्या करने पर विवश हो जाए। चीन में विराट औद्योगिक शहरीकरण के बावजूद गाँवों को एकदम दरकिनार नहीं कर दिया गया है और चीन की विशाल आर्थिक मुनाफे का एक बड़ा हिस्सा गांव देहातों के विकास पर खर्च हो रहा है। चीन में समस्त विश्व में सबसे अधिक पूंजी निवेश होने के पीछे एक कारण यह भी विद्यमान रहा है, कि सरकारी भ्रष्टाचार पर कड़ी लगाम निरंतर ही कसी रही है। शीर्ष पदों पर विराजमान कम्युनिस्ट नेताओं और बड़े सरकारी अफसरान के भ्रष्ट्राचार के मामलात में पकड़े जाने पर उनको यथाशीघ्र फाँसी पर लटका दिए जाता है। इसी वर्ष ही चीन के पूर्व रेलमंत्री को भ्रष्ट्रचार के संगीन इल्जाम में फाँसी दे दी गई। भारत में लोकपाल अधिनियम वजूद में आने के पश्चात शायद कुछ लगाम बड़े भ्रट्रचारियों पर कस सकेगी। भारत भी चीन सरीखी जबरदस्त आर्थिक तरक्की कर सकता है बशर्ते भारत में भ्रष्टाचार और लालफीताशाही को खत्म किया जा सके। चीन की हुकूमत के द्वारा जिस तरह तुरत-फुरत निर्णय ले लिए जाते हैं, उससे भी यहां पूंजी निवेश को जोरदार बढ़ावा हासिल हुआ है। विश्व में प्रबल आर्थिक शक्ति के तौर पर उभरने के तत्पश्चात चीन की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं भी अत्यंत प्रबल हो उठी हैं उसने अपनी वायु रक्षा सीमा में 80 फीसदी इजाफा कर दिया है, ताकि दक्षिण चीन सागर में अपने प्रभाव का विस्तार अंजाम दे सके। चीन के विस्तारवाद को लेकर जापान ने द्वतीय विश्वयुद्ध के पश्चात प्रथम बार अपनी सैन्य शक्ति में बढ़ोत्तरी करने का निर्णय किया है। भारत तो दशकों से चीन के विस्तारवाद का शिकार बना रहा है। भारत एक बड़ी आर्थिक शक्ति के तौर पर उभर कर ही चीन के विस्तारवाद का समुचित उत्तर दे सकता है।
(चीन की राजधानी बीजिंग से)
(पूर्व सद्स्य नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजरी काँऊंसिल)

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