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शहीद ए आज़म भगत सिंह
प्रभात कुमार रॉय
भारतीय संविधान के तहत स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे की चिरंतन प्रजातांत्रिक भावना को साकार रुप प्रदान करने के लिए समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों को अंगीकार किया गया। शहीद ए आज़म भगत सिंह ने भारत की सरजमीं पर लोमहर्षक जंग ए आजादी के दौर में समाजवादी सिद्धांतों का प्रबल उद्घोष किया। भगत सिंह ने संपूर्ण स्वतंत्रता हासिल करने के साथ राष्ट्र में समाजवादी समाज के संस्थापन को क्रांतिकारी आंदोलन का लक्ष्य घोषित करने का महान् ऐतिहासिक कार्य अंजाम दिया। भगत सिंह के विचारों की प्रासंगिकता इसलिए भी कायम है, क्योंकि आज़ादी हासिल होने के 65 वर्षो के पश्चात भी देश के मेहनत किसानों और मजदूरों की तक़दीर कदाचित नहीं बदली। आज़ादी के दौर में अमीरवर्ग और अमीर होता चला गया और गरीब और भी अधिक गरीब हो गया। विगत दस वर्षो में देश के ढाई लाख से ज्यादा किसान आत्महत्यायें कर चुके हैं। देश के तकरीबन 45 करोड़ लोग गरीबी की रेखा के नीचे जिंदगी जीने के लिए विवश हैं और करोड़ों की संख्या में नौजवान भी बेरोजगार हैं।
आर्य समाज और स्वामी दयानंद की विचारधारा से गहन रुप से संस्कारित और प्रेरित भगत सिंह का नाम समस्त भारत में सशस्त्र क्रांतियों की प्रवृतियों का प्रतीक बन गया। भारत की जंग ए आजादी के दौर में भगत सिंह एक ऐसी अद्भुत शख़्सियत रहा कि जिसने परंपरागत क्रांतिकारी विचारधारा में आधुनिक समाजवादी सिद्धांतों के समावेश का आग़ाज किया। भगत सिंह से पहले का भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन वस्तुतः स्वामी दयानंद और विवेकानंद के साथ ही इटली के क्रांतिकारी प्रणेता मैजनी, गैराबाल्डी और आयरिश सिन फिन नेता डी ओलीवेरा जैसे मध्यवर्गीय नेताओं से अनुप्राणित रहा था। भगत सिंह के द्वारा ही भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन सोवियत रुस की समाजवादी क्रांति के नेताओं लेनिन, स्तालिन, ट्राटस्की, बुखारिन आदि के प्रभाव को ग्रहण करने लगा। साम्यवाद के महान् पुरोधा कार्ल मार्क्स का नाम भारतीय क्रांतिकारियों के दिलो-दिमाग पर चढ़ने लगा। भगत सिंह के आगमन के तत्पश्चात ही भारत माता की जय तथा वंदेमातरम के उद्घोष के साथ ही साथ ‘इंकलाब जिंदाबाद’, ‘साम्राज्यवाद मुर्दाबाद’ के नारे क्रांतिकारी पांतों में बाकायदा गूंजने लगे। भारतीय क्रांतिकारियों की परम प्रिय पुस्तकों में सत्यार्थ प्रकाश, गीता और रामायण के साथ ही साथ कार्ल मार्क्स की ‘दास कैपिटल’ और कामरेड लेनिन की ‘राज्य और क्रांति’ को भी महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त होने लगा।
भगत सिंह जिस दल में शामिल हुए थे उसका नाम था ‘हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी’। इस दल के नेता शचींद्रनाथ सान्याल, जोगेशचंद्र चर्टजी, रामप्रसाद बिस्मिल, अशफा़कउल्ला ख़ान और चंद्रशेखर आज़ाद आदि क्रांतिकारी थे। काकोरी कांड के पश्चात चंद्रशेखर आज़ाद के अतिरिक्त इस दल के प्रायः सभी नेताओं को या तो फांसी हो गई अथवा आजीवन कारावास की सजा। चंद्रशेखर आज़ाद ने फिर से नष्टप्रायः क्रांतिकारी दल को संगठित किया, जिसके एक प्रमुख क्रांतिकारी नेता के तौर पर भगत सिंह उभरे। इस दल की एक महत्वपूर्ण मीटिंग दिल्ली के फिरोजशाह कोटला में आयोजित हुई थी, इस मीटिंग में देशभर से आए महत्वपूर्ण क्रांतिकारी एकत्र हुए। भगत सिंह की पहल पर ही इस ऐतिहासिक मीटिंग मे निर्णय लिया गया कि दल का मक़सद पूर्ण आज़ादी हासिल करने के साथ एक ऐसे समतामयी समाजवादी समाज की स्थापना करना होगा, जिसमें इंसान द्वारा इंसान का और एक देश के द्वारा दूसरे देश का शोषण मुमकिन ही न हो सकें। भगत सिंह का सबसे विशिष्ट क्रांतिकारी वैचारिक योगदान रहा कि उनकी प्रेरणा से देश के क्रांतिकारियों का आर्दश और लक्ष्य संपूर्ण आज़ादी के साथ ही साथ समाजवाद भी हो गया। भगत सिंह के प्रस्ताव को पारित करते हुए क्रांतिकारियों ने अपनी पार्टी का नाम बदल कर ‘हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन ऐसोसिएशन’ कर दिया।
भगत सिंह एक ऐसे विलक्ष्ण क्रांतिकारी थे, जिनको सशस्त्र क्रांति के साथ ही अध्ययन करने का भी जबरदस्त जूनून था। कानपुर प्रवास में भगत सिंह की मुलाकात हुई राधमोहन गोकुल, सत्यभक्त और मौलाना हसरत मोहानी के साथ जिनका जबरदस्त रुझान समाजवादी विचारों की ओर था। गणेश शंकर विद्यार्थी के अखबार में लिखे क्रांतिकारी लेखों द्वारा हुए भगत सिंह की जीवन दृष्टि के दीदार होते हैं। भगत सिंह ने लिखा था कि इंकलाब की तलवार विचारों की सान पर ही तेज की जाती है। भगत सिंह के व्यक्तित्व में देशभक्ति, वीरता, दृढता, आत्मोसर्ग के साथ ही एक युग दृष्टा की अति तीक्ष्ण मेधा और वैज्ञानिक समझ बूझ का शानदार समावेश निहित रहा। आयु में अपेक्षाकृत छोटे होते हुए भी भगत सिंह अपने दौर के क्रांतिकारियों से वैचारिक रुप से अग्रणी थे। भगत सिंह के साथी क्रांतिकारी भगवानदास माहौर के अनुसार व्यक्तिगत रुप से जो स्मृति मेरे मन में सर्वोपरि है वह यही है कि समाजवाद की ओर मुझे उन्मुख करने वाले मेरे प्रथम गुरु भगत सिंह थे। भगत सिंह के अनुसार आज़ाद भारत में किसान-मजदूरों के राज्य की स्थापना होनी चाहिए, ताकि देश के मेहनतकशों के लिए वास्तिवक आज़ादी हासिल की जा सके। सामंतवादी और पूंजीवादी व्यवस्था को भगत सिंह ने आम जनमानस की दुश्मन क़रार दिया। गांधी जी के नेतृत्व में आजादी का आंदोलन चलाने वाली कांग्रेस को भगत सिंह ने पूरी तरह से नक़ारा। फांसी से पहले क्रांतिकारी शिव वर्मा के साथ अपनी आखिरी मुलाकात में भगत सिंह ने कहा था कि अंग्रेजों की जड़े हिल चुकी हैं, वे 15 वर्षो में यहां से चले जाएगें। कांग्रेस और ब्रिटिश राज में ऐसा कोई समझौता हो सकता है, जिसके तहत भारत को आधी अधूरी आज़ादी हासिल हो जाए, किंतु आम जनमानस की वास्तविक हालत में कोई बुनियादी फर्क नहीं पड़ेगा, क्योंकि गोरे अंग्रेज शासकों का स्थान काले अंग्रेज ग्रहण कर लेगें।
देश की आज़ादी के बारे में भगत सिंह की भविष्यवाणी एकदम सही साबित हुई। भगत सिंह की शहादत के तकरीबन 16 वर्षो के पश्चात भारत को विखंडित आज़ादी प्राप्त हुई। भगत सिंह ने अपनी स्वंय की शहादत के बारे में फरमाया कि ‘देशभक्ति के लिए यह सबसे बड़ा पुरुस्कार है। और मुझे गर्व है कि मैं ये पुरुस्कार पाने जा रहा हूं। अंग्रेज यदि सोचते हैं कि पार्थिव शरीर को नष्ट करके इस देश में सुरक्षित रह पाएगें तो यह उनकी भूल है। वे मुझे मार सकते हैं किंतु मेरे विचारों को कदाचित नहीं मार सकते। वे मेरे शरीर को कुचल सकते हैं किंतु मेरे विचारों को नहीं कुचल सकते, ब्रिटिश हुकूमत के लिए मरा हुआ भगत सिंह जीवित भगत सिंह से कहीं ज्यादा खतरनाक़ साबित होगा। मुझे फांसी लग जाने के बाद क्रांतिकारी विचारों की सुगंध इस मनोहर देश के वातावरण में व्याप्त हो जाएगी। वह नौजवानों को मदहोश कर देगी और वे क्रांति और आजा़दी के लिए पागल हो उठेगें’। भगत सिंह की यह बात भी एकदम सही साबित हुई जबकि उसकी शहादत के केवल 11 सालों के बाद सन् 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान नौजवानों ने सारे देश में समूची ब्रिटिश व्यवस्था को तहस नहस करके रख दिया और अनेक जिलों में ब्रिटिश राज खत्म करके देशी हुकूमत कायम कर ली।
भगत सिंह केवल 24 साल जीवित रहे, वह शानदार शख़्स थे जोकि क्रांतिकारी आंदोलन से उत्पन्न हुआ और फिर क्रांतिकारी आंदोलन का सर्वोच्च प्रतीक बन गया। भगत सिंह की विचारधारा केवल एक शख़्स की विचारधारा ही नहीं, वरन् एक आंदोलन के बहुत सारे क्रांतिकारी साथियों की साझा-सामूहिक सोच की सशक्त विचारधारा है। सन् 1926 में साम्प्रदायिकता और धर्मान्धता के प्रश्न पर भगत सिंह और उनके साथियों का विचार था कि ‘सभी प्रकार के सांप्रदायिक पूर्वाग्रह हमारी प्रगति के रास्ते में सबसे बड़ी रूकावट हैं। हमें इन्हें दूर फेंक देना चाहिए’। देश में उभरते हुए सांप्रदायिकता के खतरे को भगत सिंह बखूबी पहचान लिया था और नौजवान सभा के द्वारा इसके प्रति देशवासियों आगाह किया था। बर्बर साम्प्रदायिकता ने ही देश को खंडित कराया और आजा़द भारत को निरंतर ही नुकसान पहुंचा रही है। भगत सिंह का विचार था कि सशक्त किसान-मजदूर आंदोलन की वर्गीय चेतना ही सांप्रदायिक ताकतों का मुकाबला कर सकती है। भगत सिंह ने एक स्थान पर कहा कि हमारा इंकलाब ईश्वर विरोधी हो सकता है, किंतु इंसान विरोधी कदाचित नहीं हो सकता।
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