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चले चलो कि वो मंजिल अभी नहीं आई

WORDS OF PK ROY
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चले चलो कि वो मंजिल अभी नहीं आई
प्रभात कुमार रॉय
जन नायक अन्ना हजारे ने आखिरकार 13 दिनों तक जारी राष्ट्रव्यापी जन उभार से परिपूर्ण जद्दोजहद के पश्चात अपने अनशन का पटाक्षेप अंजाम दिया। राष्ट्र के नाम अपने पैगाम में अन्ना हजारे ने साफ तौर पर फरमाया कि जन-लोकपाल विधेयक के ज्वलंत प्रश्न पर भारतीय जनगण को अभी तो आधी अधूरी फतह हासिल हुई, संपूर्ण विजयश्री तो तब ही प्राप्त होगी, जबकि ताकतवर जन-लोकपाल विधेयक को संसद पारित कर देगी। अपने पैगाम में अन्ना हजारे ने देश को संबोधित करते हुए कहा कि उनका संघर्ष वस्तुतः व्यवस्था परिवर्तन के लिए जन-लोकपाल बिल तो उस दिशा में महज एक कदम है। अभी तो लडा़ई का आग़ाज हुआ है। संवैधानिक मक़सद को हासिल करने के खातिर अमीर-गरीब के मध्य उत्पन्न भयावह आर्थिक फर्क को खत्म करना होगा। सत्ता के विकेंद्रीकरण द्वारा ग्राम सभाओं को ताकत प्रदान करनी होगी। अन्ना आंदोलन से तशकील हुई संपूर्ण परिस्थिति में फैज़ अहमद फैज का एक शेर जहन में अनायास हिलोरे लेने लगा-
अभी गिरानी ए शब में कमी नहीं आई
नजाते दीदा ओ दिल की घडी़ नहीं आई
चले चलो कि वो मंजिल अभी नहीं आई
राजसत्ता के अंहकार में मदमस्त हुकूमत को आखिरकार अन्ना आंदोलन में भारतीय जनगण के अविरल उमड़ते सैलाब के समक्ष नतमस्तक होने के लिए विवश होना पडा़। भ्रष्ट लुटरे बन चुके सत्तानशीन राजनेताओं ने अन्ना आंदोलन को कुचलने की प्रत्येक कोशिश अंजाम दी। अन्ना हजारे को बाकायदा गिरफ्तार करके तिहाड़ जेल दिखाई। अन्ना हजारे पर व्यक्तिगत तौर पर काँग्रेस के पैरोकारों ने बेबुनियाद इल्जामात आयद किए। काँग्रेस के प्रवक्ताओं ने अन्ना हजारे को सर से पांव तक भ्रष्ट और सेना का भगौडा़ करार देने की तक कुचेष्टा की। भारतीय थल सेना की ओर से जारी बयान के पश्चात कि अन्ना हजारे ने 12 वर्षो तक भारतीय थल सेना में बेदाग सर्विस संपूर्ण कर रिटायरमेंट लिया और सेना में उत्कृष्ट सेवा के लिए उनको पाँच पदक प्रदान किए गए। इसके बाद तो काँग्रेस प्रवक्ताओं की बोलती बंद हो गई। काँग्रेस नेतृत्व की बौखलाहट में तो इस क़दर इज़ाफा हुआ कि उसके पुरोधाओं ने तो अन्ना आंदोलन को मीडिया का ही सृजन क़रार दे दिया। सर्वविदित है कि मीडिया घटनाओं को कदापि सृजित नहीं कर सकता, हाँ उनको सनसनीखे़ज तौर पर पेश अवश्य कर सकता है। अन्ना आंदोलन के संदर्भ में मीडिया पर काँग्रेस नेतृत्व द्वारा की गई इस बेहूदा टिप्पणी को केवल बौखलाहट करार दिया गया। इन दिनों भारतीय मीडिया से बेहद ख़फा काँग्रेस नेतृत्व ने माडिया पर एकतरफा कवरेज का इल्जाम आयद किया। जंतरमतर पर अन्ना अनशन के दौर से ही भ्रष्टाचार विरोधी अन्ना आंदोलन को यकी़नन मीडिया की बहुत जोरदार कवरेज हासिल रही, किंतु अन्ना आंदोलन को मीडिया का सृजन क़रार दे देना, काँग्रेस नेतृत्व की तकरीबन उसी कोटि की मूर्खता करार दी जाएगी, जिस कोटि कि मूर्खता काँग्रेस नेतृत्व ने बाबा रामदेव के आंदोलन की तर्ज पर ही अन्ना आंदोलन को कुचल डालने की गरज से 16 अगस्त के अपराह्नकाल में अन्ना हजारे को तिहाड़ जेल भेजकर अंजाम दी।
काँग्रेस नेतृत्व इस नग्न तथ्य को समझने में नाक़ाम रहा कि सन् 2004 से प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और मैडम सोनिया गाँधी के साथ मजबूती से संबद्ध रहे, मध्यम वर्ग ने अब काँग्रेस कतारों का परित्याग कर दिया है। कुल भारतीय आबादी के तकरीबन 25 फीसदी तक पंहुच चुका मध्यवर्ग, विगत पंद्रह वर्षो में एक अत्यंत शक्तिशाली वर्ग के तौर पर उभरा। सन् 1991 से तत्कालीन वित्तमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा आग़ाज किए गए शानदार आर्थिक सुधारों ने पं0 नेहरु के कार्यकाल से कायम रही भारतीय अर्थव्यवस्था को लाइसेंस राज की जकड़न से बाहर निकाला। एक विशाल प्राइवेट सैक्टर की आधारशिला पर ताकतवर मध्यम वर्ग का निर्माण हुआ। भारतीय मीडिया ने भी बडे़ पैमाने पर टैलिवीजन की रंगीन दुनिया में कदम रखा। शासकीय दूरदर्शन की दुनिया से निकल कर रंगीन टैलिवीजन के चैनल्स ने छोटे शहरों और कस्बों के साथ ही लाखों गाँवों तक अपनी पंहुच कायम की। विगत बीस वर्षो में क्षेत्रीय अखबारों ने तो स्वयं को विस्तारित करने में अनोखा कमाल कर दिखाया। मीडिया की प्रखर पाँतों में मध्यम वर्गीय युवा चेहरों ने अपनी जोरदार पहचान स्थापित की। मध्यवर्ग के अत्यंत प्रतिभाशाली नौजवानों की पहली पसंद अब प्राइवेट सैक्टर की नौकरियां बन गई।
उच्च शिक्षित मध्यम वर्ग ने ही वस्तुतः आज़ादी के आंदोलन की कयादत की और बैरिस्टर गाँधी ने अपने विलक्षण आंदोलनकारी चातुर्य से इसमें राष्ट्र के करोडो़ किसानों को कामयाबी के साथ आज़ादी के आंदोलन संबद्ध कर दिखाया। विगत कुछ वर्षो में शासकीय भ्रष्टाचार के रिकार्ड तोड़ स्कैंड्ल्स प्रकाश में आए, जिसके कारणवश सचेत-शिक्षित मध्यम वर्ग बेहद आहत हुआ। मूलतः मध्यवर्गीय चरित्र के मीडिया कर्मी भी राजकोष की जबरदस्त लूट के रिकार्ड तोड़ स्कैंड्ल्स से गहन तौर पर अत्यंत आहत और अधीर हुए। ऐसे विकट दौर में एक निपट देहाती प्रतीत होने वाले और मामूली शिक्षा प्राप्त सैन्य यौद्धा अन्ना हजारे ने जब जंतरमंतर पर आजादी के दौर की भ्रष्टतम सरकार को ललकारा और सरकारी भ्रष्ट्राचार पर कडी़ लगाम कसने के लिए जन-लोकपाल विधेयक का मजमून पेश किया तो जैसे समस्त मध्यवर्ग के साथ ही साथ भारत के मीडिया कर्मी भी रातो रात जैसे अन्ना हजारे का दिवाने हो उठे। अरबों खरबों की धनराशि के अकूत भ्रष्ट्राचारी लूट को संरक्षण प्रदान करने वाला काँग्रेस नेतृत्व कदाचित मध्यवर्ग के गम ओ गुस्से और उसकी विकल वेदना का समझने में नाक़ाम रहा। राजनीतिक पैंतरेबाजी खेलते हुए लोकपाल बिल पर ज्वाइंट ड्राफ्टिंग कमेटी बनी, जिसमें कि अन्ना हजारे के आग्रह के बावजूद विपक्षी दलों को बाहर रखा गया। आखिरकार हुकूमत ने अत्यंत लचर नाक़ारा लोकपाल बिल संसद के पटल पर पेश कर दिया। इस तमाम राजनीतिक छल कपट और धोखाधडी़ के बावजूद काँग्रेस लीडरशिप क्या यह उम्मीद रखती है कि मध्यवर्गीय नैतिकता के कुछ बचे खुचे संस्कारों से ओतप्रोत भारतीय मीडिया धोखेबाज काँग्रेस लीडरशिप की कुटिल कूटनीति के कसीदे पढ़ता तो यह सरासर धृष्टता और सांमती अंहकार है, जोकि नेहरु डायनेस्टी के पुजारियों को विरासत में हासिल हुआ।
काँग्रेस नेतृत्व के साथ ही साथ मुख्य विपक्षी राजनीतिक दल भाजपा ने भी जन-लोकपाल बिल के प्रश्न पर अत्यंत मौकापरस्त राजनीति का परिचय पेश किया। जन-लोकपाल बिल पर जबरदस्त राष्ट्रव्यापी जन लहर का दीदार करने पश्चात ही शासकीय भ्रष्टता को कर्नाटक प्रांत में दीर्घकाल तक पालने पोसने वाली भाजापा ने बडे़ ही नाज़ नखरों और मान मुनव्वल को बाद संसद में जन- लोकपाल बिल पर अपना समर्थन प्रदान करने का फैसला लिया, ताकि वह सरकार विरोधी जन-लहर का राजनीतिक फायदा उठा सके। सत्तानशीन काँग्रेस और मुख्य विपक्षी दल भाजापा के जन-लोकपाल बिल के प्रश्न पर कुटिल राजनीतिक आचरण को मद्देनज़र रखते हुए, एक तथ्य स्पष्ट तौर पर उभर राष्ट्र के समक्ष आता है कि राष्ट्र की राजनीतिक संस्कृति कितने गहरे रसातल में जा चुकी है, जहाँ से उबार कर पुनः राजनीतिक जन-संस्कृति का नैतिक पुनर्निर्माण करना अत्यंत दुष्कर कार्य सिद्ध होगा। राष्ट्र निर्माण के कठिन नैतिक कार्य में मीडिया को राजसत्ता के चौथे स्तंभ के रुप में एक शानदार भूमिका निर्वाह करना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने राजसत्ता के अहम स्तंभ के तौर पर शक्तिशाली भ्रष्ट लुटेरे राजनेताओं को जेल की सलाखों के पीछे धकेल कर एक नया इतिहास रच डालने का आग़ाज कर दिया। अन्ना आंदोलन की सक्रिय पाँतों में करोड़ो किसानों और मजदूरों की शिरकत के बिना व्यवस्था परिवर्तन का चिरंजीवी स्वप्न कदाचित साकार नहीं हो सकेगा, जोकि जंगे ए आजादी के क्रांतिकारी योद्धाओं द्वारा देखा गया। घृणित सांप्रदायिकता, अमानवीय जातिवाद और घनघोर आर्थिक-सामाजिक विषमता को भारतीय समाज में पूर्णतः नेस्तोनाबूद किए बिना, यह कतई मुमकिन नहीं कि भारतीय संविधान में घोषित लक्ष्यों को हासिल किया जा सके।

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