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प्रभात कुमार रॉय
15 अगस्त 1947 से प्रत्येक वर्ष भारत एक राष्ट्र के रुप में जोशो खरोश से आजादी का शानदार जश्न मनाता आया। देश के सभी प्रधानमंत्री लालकिले की प्रखर प्राचीर से देश के लिए तक़रीरे करते रहे। लालकिले के प्रागंण में सरकारी विद्यालयों के बच्चे तक़रीर पर बारम्बार तालियां भी बजाते रहे। देश के सभी प्रधानमंत्रियों ने राष्ट्र के जनमानस से ऐसे वादे किए, जोकि राजसत्ता द्वारा कदाचित नहीं निभाए गए। जनमानस को त्रस्त करती भयानक मंहगाई पर लगाम कसने का वादा तो विगत तीन वर्षो से प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की तक़रीरों में ही किया जा रहा है, संपूर्ण राष्ट्र जानता है आखिरकार इसे कितना निभाया गया। आतंकवाद को नेस्तोनाबूद कर डालने और राष्ट्र को संपूर्ण सुरक्षा प्रदान का संकल्प विगत 30 वर्षो से देश का प्रत्येक प्रधानमंत्री लालकिले की प्राचीर से दोहराता रहा। 1947 में आजादी हासिल होते ही भारत ने अपनी आजादी का शानदार जश्न और अपने विभाजन का मातम एक साथ मनाया। लाखों बेगुनाह भारतवासी कत्ल हुए और करोडों दरबदर हो गए थे। आज भी आजादी का जोरदार जश्न, इस मातम के साथ मनाया जाता है कि देश की आजादी के लिए अपना बलिदान करने वाले लाखों शहीदों की आकांक्षाओं और सपनों को उनके वारिसों द्वारा साकार नहीं किया जा सका।
विगत चौसठ वर्षो में भारतीय गणतंत्र की सबसे महान उपलब्धि रही है कि देश में उठे समस्त पृथकतावादी झंझावातों के मध्य राष्ट्र ने स्वयं को बखूबी एकजुट बनाए रखा। भारत के पडौ़सी मुल्क पाकिस्तान, म्यांमार, नेपाल, थाईलैंड आदि में गणतंत्र सदैव ही डांवाडोल बना रहा। भारतीय गणतंत्र ने अत्यंत कामयाबी के साथ 15 आम चुनाव आयोजित किए। आजादी की 65 वीं वर्षगाँठ का जश्न मनाते हुए भारत बाकायदा विश्व की एक जबरदस्त आर्थिक शक्ति के तौर पर उभर चुका है, किंतु आर्थिक शक्ति के तौर पर स्थापित होने का समुचित फायदा भारत के जनगण तकरीबन सौ करोड़ किसान मजदूरों तक पंहुच नहीं सका। मुठ्ठी भर कारपोरेट घराने, जिनकी तादाद महज सौ से अधिक नहीं है, इनकी कुल संपदा विगत एक साल के दौरान ही लगभग 15 लाख करोड़ से बढकर 25 लाख करोड़ हो गई। विगत वर्ष 54 खरबपति थे, इस वर्ष इनकी संख्या बढकर 95 हो गई है। यही है राष्ट्र की आठ फीसदी आर्थिक विकास दर की निर्मम वास्तविकता रही कि जिसके चलते पिछले एक साल के काल में बेहद गरीब दरिद्र नागरिकों की संख्या तकरीबन 40 करोड से बढकर 42 करोड़ हो गई। 9 करोड़ से बढकर बेरोजगार नौजवानों की तादाद तकरीबन दस करोड़ हो गई। ताजमहल के विषय में प्रख्यात लेखक एडल्स हक्सले का कमेंट बरबस याद आ जाता है कि इसके संगमरमर के पथ्थरों की चमक दमक की पृष्ठभूमि में बेहिसाब अंधकारपूर्ण गुनाह दफ़न हैं।
भारतीय संविधान की प्रस्तावना में सार्वभौमिक, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, जनवादी प्रजातंत्रिक भारत के निर्माण का अहद लिया गया। देश के सभी नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय प्रदान करने और राष्ट्र में स्वतंत्रता, समानता एवं भाईचारा स्थापित करने का संकल्प लिया गया। भारतीय संविधान के प्रस्तावना में लिए गए शानदार संकल्पों को साकार करने की खातिर भारतीय नागरिकों के बुनियादी अधिकारों की जोरदार इबारत तशकील की गई। राज्यसत्ता की लिए राह प्रशस्त करने की खातिर नीति निर्देशक सिद्धांतों की संरचना अंजाम दी गई। जनगण की प्रतिनिधि सरकार की स्थापना के लिए संविधान के आर्टिकल्स रचित किए गए। संविधान के तहत ऐसी जन प्रतिनिधि हुकूमत की स्थापना का प्रावधान किया गया, जोकि भारतीय जनमानस के द्वारा भारतीय जनमानस के लिए निर्मित की जाए। संविधान के आर्टिकिल्स के आधार पर संवैधानिक मक़सद को हासिल करने के लिए विधायिका, न्यायपालिका, केंद्रीय सरकार और प्रांतीय सरकारों का विशाल प्रजातांत्रिक ढांचा खडा़ किया गया।
विचार करना चाहिए कि संवैधानिक शासन के तहत लिए इस संकल्प को किस हद तक निभाया गया। क्या भारत के सभी नागरिकों के लिए सामाजिक और आर्थिक न्याय हासिल किया गया। शासकीय आंकडें ही खुद बयान करते हैं कि महज चालीस रुपए रोज पर गुजारा करने वाले, देश के 42 करोड़ नागरिक गरीबी रेखा के बोझ तले कुचल कर जिंदगी व्यतीत करने के लिए विवश हैं। दबे कुचले इन 42 करोड़ नागरिकों में अधिकतर आदिवासी, दलित और मुस्लिम समुदाय के हैं, जिनके लिए भारतीय संविधान के प्रथम पैराग्राफ में ही सामाजिक और आर्थिक न्याय प्राप्त करने का संकल्प लिया गया। प्रख्यात आदिवासी नेता कैप्टन जयपाल सिंह ने 13 सितंबर 1946 को संविधान निर्मात्री सभा में तक़रीर करते हुए कहा था कि यदि भारतीय जनता के किसी समूह के साथ सबसे ज्यादा खराब व्यवहार किया गया है तो वे मेरे अपने आदिवासी लोग रहे हैं। हमारा संपूर्ण इतिहास दमन, अत्याचार और शोषण से सराबोर है, जिसके विरुद्ध हम आदिवासी निरंतर विद्रोह करते ही रहे हैं। 1928 में एम्सटर्डम के मैदान में विजेता भारतीय हाकी टीम के कप्तान कैप्टन जयपाल सिंह के ये अल्फाज़ जीवंत और साकार हो उठे हैं, जबकि 25 करोड़ आदिवासी किसान जनगण, देश में जारी नक्सल विद्रोह का सशक्त जनआधार बन चुके हैं। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने नक्सल समस्या को राष्ट्र का सबसे बडा़ मसअला क़रार दिया। ईमानदार प्रधानमंत्री के लिए राष्ट्रीय राजकोष से अरबों खरबों रुपयों की अकूत लूट खसोट, बेईमानी और भ्रष्टाचार देश का सबसे बडा़ मसअला कदाचित नहीं है, जिसने कि राष्ट्र के मेहनतकश नागरिकों को उनके वाजिब हक़ों और तरक्की से महरुम कर दिया है। बेईमानी और भ्रष्टाचार विरोध में उठी प्रत्येक मुहिम को ईमानदार प्रधानमंत्री की राजसत्ता कुचल डालने पर आमादा रही है।
देश के किसानों की जोरदार शिरकत के दमखम पर आजादी का संपूर्ण संग्राम लडा़ गया। संत कबीर का करघा, गाँधी का चरखा, भगत सिंह का पगडी़ संभाल जट्टा, सुभाष बोस का जय हिंद सबसे अधिक करोडों किसानों में ही गूंज उठा था। जंग ए आजादी का इतिहास गवाह है कि 1857 से 1942 तक लडे़ गए सभी स्वातंत्रय संग्रामों में सबसे अधिक कुर्बानियां देश के किसानों ने अता की। विगत एक दशक के दौरान 2 लाख से अधिक किसानों द्वारा अंजाम दी गई आत्महत्याओं से उठी चीखों का आर्तनाद बयान करता हैं कि संविधान में उल्लेखित आर्थिक न्याय के संकल्प को, राजसत्ता के सभी अलंबरदारों द्वारा एकदम विस्मृत कर दिया गया। यूं तो कथित आर्थिक ग्लोब्लाइजेशन की आँधी में तक़रीबन चालीस हजार मजदूर भी आत्मघात कर चुके हैं। संवैधानिक संकल्पों की घनघोर उपेक्षा से उपजे और परवान चढे जबरदस्त असंतोष ने राष्ट्र को आतंकवाद के अंधकार में धकेल दिया। नौजवानों के मध्य बढती जाती भयावह बेरोजगारी ने प्रत्येक रंग के आतंकवाद को नए रिकरुट प्रदान किए और यह सिलसिला आज भी बदस्तूर जारी है। 31 वर्षों पूर्व पंजाब प्रांत से प्रारम्भ हुआ भयानक आतंकवाद कश्मीर, असम, मणिपुर आदि प्रांतों तक विस्तारित होकर, अभी तक कुल मिलाकर तीन लाख नौजवानों की हलाकतें अंजाम दे चुका है और भारत को एक बार पुनः खंडित करने के लिए दनदना रहा है। आज हम भारतवासी फिर से इस संकल्प को दोहराए कि जंग ए आजादी के शहीदों की आकांक्षाओं और सपनों को साकार रुप प्रदान करने के लिए, देश के जनगण को लूटने वाले तमाम भ्रष्ट बेईमान गद्दारों को इतिहास में इतना गहरा दफ़न करेगें जहां से वे पुनः सर न उठा सकेगें। एक समतावादी, ममत्व और भाईचारे से सराबोर ऐसे राष्ट्र का निर्माण करेगें, जिसमें फिरकापरस्त, जातिवादी और मेहनतकश जनगण को लूटने वाले तत्वों के लिए कहीं कोई कोना तक नहीं रहेगा।
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